परमात्मा कबीर साहबका मगहर से सशरीर सतलोक गमन

पंडितों ने गलत मान्यता फैलाई थी की कि काशी में मृत्यु होने से मुक्ति मिल जाती है और मगहर में मृत्यु होने से गधा बनते हैं। लेकिन कबीर साहेब का मानना था कि अगर काशी में ही मुक्ति होती है तो जीवन भर राम-नाम जपने और ध्यान-साधना करने की क्या आवश्यकता। इसलिए कबीर साहेब काशी से मगहर जा पहुँचे।
कबीर साहेब ने अपनी वाणी में भी कहा है की,
"लोका मति के भोरा रे, जो काशी तन तजै कबीरा, तौ रामहि कौन निहोरा रे"
काशी के ब्राह्मणों ने गलत अफवाह फैला रखी थी कि जो काशी में मरता है स्वर्ग जाता है और जो मगहर में शरीर छोड़ता है वह गधे का जन्म पाता है। कबीर परमेश्वर जी मनमाने लोकवेद का खंडन करने के लिए मगहर में हजारों लोगों के सामने सशरीर गये। शरीर की जगह फूल मिले और भविष्यवाणी कर बताया कि मैं स्वर्ग और महास्वर्ग से ऊपर अविनाशी धाम सतलोक जा रहा हूँ।



मगहर में सूखी नदी में पानी बहाना

मगहर के समीप एक आमी नदी बहती थी। वह भगवान शंकर जी के श्राप से सूख गई थी। पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब ने उसी समय अपनी शक्ति से उसमें पानी भर चलाया। आज भी आमी नदी प्रमाण के तौर पर बह रही है। फिर परमेश्वर कबीर साहेब हजारों लोगों के सामने से सशरीर सतलोक गये।



"मगहर का मौहल्ला कबीर करम"
कबीर परमेश्वर जी ने मगहर रियासत में 14वीं शताब्दी में पड़े भीषण अकाल को अपनी समर्थ शक्ति से टालकर वर्षा करके सबको जीवनदान दिया। हजारों हिंदू-मुसलमानों ने उपदेश लिया। एक 70 वर्षीय निःसंतान मुसलमान दंपती को पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। वर्तमान में उस व्यक्ति का एक पूरा मौहल्ला बना हुआ है, नाम है "मौहल्ला कबीर करम"

मगहर लीला
मगहर रियासत के अकाल प्रभावित स्थान में गोरखनाथ जैसे सिद्ध पुरुष भी बारिश करवाने में नाकाम रहे थे। लेकिन परमात्मा कबीर जी ने वहां बारिश करवाकर दिखा दी थी और साबित कर दिया कि वही जगत पालनहार हैं।

मगहर में हिन्दू मुसलमानों के बीच का युद्ध टाल दिया था परमात्मा ने।
हिन्दू मुसलमानों में यह झगड़ा था कि वे अपने गुरु कबीर परमेश्वर जी का अंतिम संस्कार अपनी-अपनी विधि से करना चाहते थे। कबीर जी द्वारा मगहर में शरीर त्यागने के बाद उनके शरीर की जगह सुगन्धित पुष्प मिले जिस वजह से हिन्दू मुस्लमान का भयंकर युद्ध टला था। वे सभी एक दूसरे के सीने से लग कर रोये थे जैसे किसी बच्चे की माँ मर जाती है। यह समर्थता कबीर परमेश्वर जी ने दिखाई जिससे गृहयुद्ध टला। मगहर में भाईचारे की मिसाल!
हिन्दू व मुसलमानों के बीच धार्मिक सामंजस्य और भाईचारे की जो विरासत कबीर परमात्मा छोड़कर गए हैं उसे मगहर में आज भी जीवंत रूप में देखा जा सकता है।
मगहर में जहाँ कबीर परमेश्वर जी सशरीर सतलोक गए थे, वहां हिंदू-मुसलमानों के मंदिर और मजार 100-100 फुट की दूरी पर बने हुए हैं



कबीर, विहंसी कहयो तब तीनसै, मजार करो संभार।
हिन्दू तुरक नहीं हो, ऐसा वचन हमार।"
हिंदू राजा बीर सिंह बघेल और मुस्लिम राजा बिजली ख़ाँ पठान को कबीर परमात्मा ने सतलोक जाने से पहले कहा जो मेरे जाने के बाद मिले आधा आधा बांट लेना। दो चद्दर और सुगंधित फूल मिले, परमात्मा का शरीर नहीं मिला था।
बीरसिंघ बघेला करै बीनती , बिजली खाँ पठाना हो । दो चदरि बकसीस करी हैं , दीनां यौह प्रवाना हो ।।
परमात्मा कबीर जी चार दाग से न्यारे हैं!
चदरि फूल बिछाये सतगुरु , देखें सकल जिहाना हो । च्यारि दाग से रहत जुलहदी , अविगत अलख अमाना हो ।।

मगहर लीला
आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने परमात्मा कबीर साहेब की मगहर लीला(सशरीर सतलोक गमन) का वर्णन करते हुए कहा है कि,
"देख्या मगहर जहूरा सतगुरु, कांशी मैं कीर्ति कर चाले, झिलमिल देही नूरा हो।

"साधना चँनल देखिये श्याम 7:30 बजे

https://news.jagatgururampalji.org

सत् साहेब



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Milan Tomic

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